२०८१ बैशाख, १७ सोमबार

लाल डायरी

साँझ भऽ गेल छल । घरपर असगरे छलहुँ, अतः लनसँ लागल गेटकेँ बन्देकऽ दी । रुमसँ गेटक दूरी एतेक छल जे ओकरा खुलब आ बन्द करबाक आभास तक नहि होइत छल । केओ धीरेसँ नुकाकऽ बाउण्ड्री–वाल भीतर चलि आबे तऽ पते नहि चलत । बच्चा बाहर पढैÞत अछि । पति अपन बहिनक गाम गेल छथि । वा कही घर पूरे खाली–खाली अछि । ओना घरपर एकटा नोकर अछि । जेकरा ओ बहुत निर्देशन दऽ कऽ गेल छथि, मुदा कहिओ ओ ९ बजेसँ पहिने नहि अबैत अछि ।

खालीपनक ई क्रममे टिभीकँे आविस्कार करऽ बलाकें हृदयसँ आभार प्रगट करैत छी । जखन पत्र–पत्रिकासँ मोन भरि जाइत अछि, हम टिभीक कार्यक्रममे डूबि जाइत छी ।

सिरियल शुरु होबऽमे एखन समय छल तँए हम सोचलहुँ ताबत अपना लेल दूटा रोटी बना ली । बच्चा आ पति बाहर रहलाक कारणे हम भानस घरक प्रति एकदम लापरवाह भऽ गेल छी । एकटा तरकारी बनबैत छी ओकरो तीन बेर खा लैत छी, कखनो फलफूल खा लैत छी, कखनो दिनक भोजन तऽ गोलेकऽ दैत छी । मोनेमोन अपन निर्णयकेँ सही कहैत चलू कम भोजन कएलासँ स्वास्थ्य बढ़ियाँ रहैत अछि । आब के ओतेक मेहनत करए, भात–दालि आ बहुत प्रकारक तरकारी बनाबऽमे किए समय लगाबी । ओना आइ–काल्हि बड़ समय रहैत अछि ।

ग्यास जराकऽ हम ताबाकें चुल्हापर राखि देलहुँ आ फ्रिजमेसँ सानल आँटा निकालिकऽ एकटा रोटी बेलऽ ताबापर रखलहुँ आ दोसर बेलऽ लगलहुँ । पहिल रोटी सेकनहे छलहुँ की मूल गेटसँ घण्टीक आवाज आएल । ओह..... के भऽ सकैत अछि, एहि समय ?

‘आबि रहल छी,’ घण्टी बजबऽ बलाके सन्तुष्टिक लेल हम जोड़सँ जबाब देलहुँ, मुदा फटाफट दोसर रोटी सेकऽ लगलहुँ । किए कि गेट खोलऽसँ पहिने हम अपन सभ काजकऽ लेबऽके पक्षमे छलहुँ । कहूँ बगलमे रहल रामपुरबाली भेलीह तऽ गेलहुँ काजसँ । पाँच मिनट कहिकऽ ओ पूरे घण्टाभरि समय लऽ लैत छथि । पूरे संसारक समाचार, गप्पक पूरे पेटारा हुनका लग भड़ल रहैत अछि । कोनो विषयपर चाहिकऽ बात कऽ ली । संविधान निर्माण हो वा माओवादी समस्या, मधेशी नेतासभक स्थिति सभ हुनका लग रहैत अछि । कहिओ–कहिओ हम सोचैत छी यदि ओ राजनीतिमे होइतथि तऽ खूब नाम कमैतथि । रामपुरबालीके अएबाक आशंकासँ एखन हम हाथमे लागल आँटा धोईए रहल छलहुँ कि कलवेल अपन सम्पूर्ण शक्तिसँ घनघना उठल । ‘एस कमिङ्ग–कमिङ्ग ।’ हाथ पोछैत हम गेट दिस बढ़लहुँ ।

‘ओह ! केहन–केहन लोक होइत अछि । एतेक लम्बा घण्टी बजबैत अछि की कमजोर लोकके धड़कन ओतऽके ओतहि बन्द भऽ जाएत ।’ मोनेमोन हम बजैत जारहल छलहुँ, मुदा जहिना गेटक नजदिक पहुँचलहुँ हम अपन हाथसँ अपन केस ठीक कएलहुँ, साड़ीकँे ढंगसँ अपन कान्हपर रखलहुँ आ मुँहपर कृत्रिम मुस्की अनैत अतिथिके मोनसँ स्वागत करबाक लेल तैयार भऽ गेलहुँ ।

‘ओह अपने छी !’ हम प्रसन्नतासँ बजलहुँ, ‘प्रणाम, प्रणाम यादव जी ।’ विश्वास करु ई हमर अभिवादन लेस मात्र बनाबटी नहि छल । अभिवादनक ढंग आ बातचितक शब्दे व्यक्ति विशेषसँ अपनाक अन्तरङ्गता उजागरकऽ दैत अछि । आगा अभिवादनकें हात जोड़ने पतिक प्रिय मित्र सेवक नारायण यादव ठाढ़ छला ।

‘बहुत दिनक बाद अपनेकेँ चरण पड़ल अछि,’ हम गेँट बन्द कऽ ड्राइँग रुम दिस बढ़लहुँ ।

‘फुरसते नहि भेटैत अछि भौजी, जखन लोक काममे लागि जाइत अछि तऽ बस....., हमर वकिल साहेब नहि छथि घरपर की !’

स्कूल क्याम्पस सभमे संङे पढ़ल आ तर्कशिला भेलाक कारण यादवजी सहितक हिनकर सभ मित्र हिनका ‘वकील साहेब’ नामसँ सम्बोधित करैत छथि ।

‘नहि, ओ तऽ चारि–पाँच दिनसँ बहिनक गाम गेल छथि ।’

‘आ अएताह कहिआधरि ......’

‘एखन दू–चारि दिन आओर लागिए जाएत आबऽमे, शायद २० गतेधरि अएताह ?’

‘चलू बढ़िएँ भेल ओ नहि छथि । हमरा अहाँक बीच कबाबमे हड्डी बनितैथि । हम आ अहाँ जमिकऽ चलू गप्प मारैत छी,’ यादव जी दुनू हाथकें रगरैत बजलाह ।

‘हँ .....हँ.... हँ किए नहि, हम असगरे बोर भऽ रहल छलहुँ, अपने बैसू हम दू मिनटमे अबैत छी ।’

‘कथी लाए एम्हर, ओम्हर करैत छी बैसू भौजी, ’यादव जी निःसंकोच हाथ पकड़िकऽ बैसबाक लेल अनुरोधकऽ देलैथि । हुनकर ई व्यवहार, ई अपनापन लोककेँ बात नहि टालबाक लेल मजबुरकऽ दैत अछि ।

‘अहाँ जाति हएब उएह चाह–ताह बनाबऽ वा एहिसँ मिलल–जूलल मेहनत करऽ । बेकारके झमेलामे नहि परु भौजी ? जतेक मीठ अपनेक बातमे हएत, ओतेक चाहमे कतऽ सँ भऽ सकैत अछि ।’

हुनकर स्पष्टतापर हम बिहुँसि उठलहुँ आ बैसैत कहलहुँ, ‘से तऽ ठीके अछि मुदा अहाँक हाथ एतेक ठण्ढा किएक अछि आब तऽ फागुनो समाप्त भऽ गेल, एतेक ठण्ढो नहि अछि ।’

‘मुदा हम जतऽसँ आबि रहल छी, ओतऽ बहुत ठण्ढ छैक ।’
‘ठीक छैक ओना जनकपुरमे किछु ठण्ढ बेसी पड़ैत अछि ।’

‘ओना वकील साहेबके बीना अहाँ रहि कोना लैत छी, हमहुँ किछु कम थोरहे छी , कोनो आवश्यकता हएत तऽ कहब । ’

‘छल परपञ्च आ बनाबटीसँ दूर यादवजीके बातके कोनो दोसर व्यक्ति सूनि लिअ तऽ हुनक चरित्रपर सन्देहकऽ सकैत अछि, मुदा जे हुनका चिन्हैत अछि सएह हुनकर साफ हृदयके बूझि सकैत अछि ।’

‘आ कहू बच्चा अपनेके कतऽ पढ़ि रहल अछि ? दिव्या केहन छथि, हमरा स्मरणोे करैत छथि वा नहि ?’

‘सभ किछु बूझि गेलहुँ अपने लग गप्पक कोनो स्टक नहि अछि, तखने चालू गप्प शुरु भऽ गेल, बच्चा केहन अछि, दिव्या केहन अछि आ सुनाउ ........इएह नहि !’ कोनो बात स्पष्टसँ कहि देब यादव जी के आदत छल ।

‘ओना हमर इच्छा सेहो अपनेकें बेसी बोर करबाक नहि अछि । चलैत छी ।’

‘नहि..नहि यादवजी अपने तऽ ....’ हम की सहीमे रुक्ख व्यवहारकऽ रहल छलहुँ हम स्वंयके तौललहुँ आ परेशान भऽ गेलहुँ ।’

‘नहि भौजी, एहन कोनो बात नहि अछि । सहीमे माएके स्वास्थ्य खराब भऽ गेल अछि ओकरे देखऽ आएल छी दोसर बेर आएब तऽ दिव्याकँे सेहो लेने आएब, तहिआधरि वकील साहेब सेहो आबि जएतहा तखन जमिकऽ बैसब ।

यादवजी उठैत कहलैन्हि, ‘एकटा चीज तऽ हम बिसरि रहल छलहुँ ।’

यादवजी पुनः सोफापर बैसला आ एकटा डिब्बा निकालैत कहलाह, ‘भौजी ई लिअ, ई डायरी अहाँके लेल अनलहुँ अछि । किछु अबेर अवश्य भऽ गेल मुदा कि करितहुँ जनवरी–फरवरीमे फुरसते नहि भेटल अएबाक । सोचलहुँ कुरियरसँ पठा दी मुदा हम तऽ डायरी अपन हाथसँ अपनेकँे प्रजेण्ट करऽ चाहैत छलहुँ ।’

यादवजी कनी माथ झुकाकऽ डायरी हमरा दिस बढ़ा देलाह ।

‘धन्यवाद ।’ हम डायरी लैत कहलहुँ ।

‘ओह फेर उएह रुक्खसन धन्यवाद, ईदमे जेना गला मिलैत अछि, तहँुना लरा मिलकऽ सेहो खुशी प्रकट कएल जा सकैत अछि भौजी ।’ फेर ओ जोड़सँ हँसलाह ।

वकील साहेव होइतथि तऽ ईष्र्यासँ जड़ि जैतथि सही बात छैक ने भौजी ! ठीक छै ओ अएताह तऽ नमस्कार कहि देवैन्हि,’ आ उठिकऽ ठाढ़ होइत कहलैन्हि, ‘चलैत छी भौजी । ’

‘नमस्कार’ !’ हम हुनका गेट तक छोड़ऽ अएलहुँ, ‘फेर आएब ।’

‘हँ–हँ अबैत रहब अपनेक सपनामे,’ ओ आकर्षित मुस्कान मुँहपर आनैत कहलाह । गेटपर आबऽधरि कतेको बेर पाछू घूमि–घूमिकऽ हाथ हिलओलैन्हि । रघु ओतहि ठाढ़ छल ओकर प्रणामके जवाव देलैन्हि आ गेटसँ बाहर चलि गेलाह ।

हम रघुकेँ ताला लगएबाक आदेश देलहुँ आ भीतर चलि एलहुँ ।

सोन जकाँ मेटलकेँ मेढ़ल सुन्दर डायरी शोफापर राखल छल । हम ओकर सुन्दरताकेँ देखिकऽ हाथसँ सहलाकऽ देखलहुँ आ पृष्ठ उण्टेलहुँ भीतर सुन्दर आ सुदृढ अक्षरमे लिखल छल ।

वकील साहेब आ भौजीकेँ सप्रेम भेट

सेवकप्रसाद यादव ।

नीचा आजुक गते सेहो लिखल छल ।

लिखवाक तरिका गजव छल ।

सेवकप्रसाद यादव एकटा एहने व्यक्ति छथि गोर रंग, लम्बा आ भारी शरीर, उन्नत ललाट हुनकर स्पष्ट बाजब हरेक अवसरकेँ महत्वपूर्ण आ उन्मुक्त हँसी हजारोमे अलग पहिचान देने छल ।

एहने लाल एलबममे अपन एकटा फोटो सँग हमरा प्रजेण्ट कएने छलथि । जहिआ हम विवाह कऽ कऽ आएल छलहुँ । ओ अन्य मित्रक बाद विशेष तरिकासँ यादवजीसँ परिचय करबैत कहलैन्हि, ‘ई छथि हमर सेवक । ओना हम हुनका अपन मित्र बना लेने छी, काज बढ़ियाँ करैत छथि तँए ठीक कहलहुँ ने यादव जी ।’

‘हँ, हँ फेकैत जाउ, फेकैत जाउ मुदा बूझि लिअ अहाँके बातमे ई नहि आबऽ बला छथि,’ हमरा दिस तकैत कहलैन्हि, ‘एखनो समय अछि, हिनका भगाउ वकिली वाहेक हिनका किछु नहि अबैत छैन्हि । दू दिनमे अहाँ हिनकासँ उबि नहि जाएब तऽ फेर हमरा कहब ।’

फेर पति दिस तकैत कहलाह, अहाँक विषयमे एक्कहिटा बात कहऽके मोन करैत अछि कौवाक चोचमे अनारकली । आब हमर परिचय ठीकसँ कराएब वा खोलि दिअ अहाँक सभ पोल । ’

‘ठीक छैक...ठीक छैक ...कहि दैत छियैक,’ पति हथियार रखैत कहलैन्हि, ‘एहि लम्बा चौड़ा पहाड़ जेहन शरीरक नाम अछि, सेवक ...., नहि नहि सेवकप्रसाद यादव ।’ यादवजीकेँ शरीर तानल देखिकऽ हमर पति बिहुँसैत कहलैन्हि, ‘मुदा हम सभ हिनका कहैत छी यादवजी...’

‘मुदा अहाँ चाही तऽ सेवक सेहो कहि सकैत छी भौजी ।’ यादवजी रोकैत कहलैन्हि । ओना हम वीना कहने अपनेकेँ सेवक छी आ जखन–जखन एहि वकील साहेबसँ मोन उबिआ जाए वीना कोनो सङ्कोचके हमरा लग आबि सकैत छी ।’ यादवजीके कहलाक बाद जोड़सँ हँस्सी बजरल ।

ओहि दिन अछि आ आजुक दिन । २५ सालक लम्बा समय बित गेल सभ मित्रके केश उज्जर भऽ गेल, सभ एक दूटा नाती–पोता बला भऽ गेल छथि । मुदा हुनक स्पष्टता, हुनक उन्मुक्त हँसी अखनो जहिनाकेँ तहिना अछि । कोनो समारोहक ओ जान होइत छथि । जतऽ ओ बैसथि छथि ततऽ हुनक अगल–बगलमे लोक ओहिना आबि जाइत अछि । हरेक उमेरक लोक हुनकर बातमे इण्ट्रेष्ट लैत अछि । कहिओ ओ कहैत छथि, ‘ई जीवनकेँ हँसी ठहक्के तऽ आगाँ बढ़बैत अछि ।

मित्र ई नहि होइत तऽ जीवनके उजार आ रुक्ख बनाबऽमे कोनो कसर नहि छोड़ने अछि ई समय ? जिन्दा आ मुर्दामे कोनो फरक देखाइत अछि कनीकाल लेल हँसि आ बाजि लैत छी । फेर तऽ चिन्ताक पहाड़ अछि आगाँमे ठाढ़, नहि जानि कोन समय उपरसँ बोलाहट आबि जाइ फेर तऽ दू गज जमीन आ किछु मित्रक स्मरण ?’ बात हुनकर सारगर्भित आ सय प्रतिशत सही होइत छल, मुदा हुनकापर ई गम्भीर विषय विल्कुल नहि जँचैत छल । केओ नहि केओ कहिए दैत छल, ‘कि यादवजी अहूँ सन्तक वाणी बाजऽ लागल छी, अहाँ तऽ हँसिते नीक लगैत छी ।’

‘ठीक छै चलैत छी ।’ यादवजी जखन गम्भीर होइत छलाह तऽ उठिकऽ जएबाक लेल उद्यत भऽ जाइत छलैथि फेर मुँहपर एकटा कृत्रिम मुस्कान लबैत कहैथि, ‘नमस्कार ।’

हुनका एहिना उठिकऽ जाइत देखि लगैत छल जेना हुनका दुःखक रागकेँ किओ छू देलक अछि ।

ओ आइयो ओहिना उठिकऽ चलि देलाह, हम अपन कएल गेल हरेक व्यवहारकेँ टटोइल रहल छलहुँ । एतेक दिनपर ओ आएल छलाह हमर पति सेहो एतऽ नहि छलाह, हमर कोनो बात हुनका खराव वा अपमान जकाँ तऽ नहि लागल । एहि विश्लेषणमे डुबैत हम डायरीकेँ उठाकऽ अपन डोरमे राखिकऽ सुतबाक तैयारी करऽ लगलहुँ ।

आइ २० गते अछि । हुनका आइए आबि जएबाक छैन्हि । कोन बससँ अबैत छथि एकर सूचना सेहो ओ देने छलैथि । आइ कए दिनक बाद हमर भानस घर चमकल छल । घर तऽ ठीके छल किछु विशेष देखाबए लेल हम लनसँ दू–चारि पूmल आ पात तोड़लहुँ ओकरा गुलदस्ताक रुप देलियै आ एकटा गिलासमे किछु पानि राखि गुलदस्ताकेँ सजा ओकरा डाइनिङ्ग टेवुलपर रखलहुँ ।

पूmल तऽ आखिर पूmले होइत अछि । माथमे लगाउ वा टेवुलपर राखी, निखार तऽ आबिए जाइत अछि । स्वयंपर बढैÞत जा रहल लापरवाहीकेँ तत्कालक लेल हम त्यागि देने छलहुँ, केना ने केना हमर चालमे सेहो तेजी आबि गेल छल । अवचेतन मोनमे बैसल एकटा पतिक प्रेमे तऽ कहल जा सकैत अछि । बच्चा घरपर नहि अछि तऽ कहिओ–कहिओ अधेर अवस्थामे सेहो युवा अवस्थाक आभास वा दोसर ढंगसँ कही तऽ आनन्द होइत अछि । अबेर भऽ रहल छल, हम बेर–बेर मेन गेट दिस तकैत छलहुँ । घण्टी बजिते हम एक्के धापमे मेन गेटपर पहुँच गेल छलहुँ, पतिक मुँह उदास देखि हम असमञ्जसमे छलहुँ जे हिनका की भेलैन्हि अछि ? आखिर पुछिए लेलहुँ, ‘की भेल अछि ? मोन तऽ ठीक अछि ?’

‘नहि ....’ उदासी भड़ल जवाव भेटल, ‘थाकल छी कनी आरामकऽ लिअ वा हाथ मुहँ धो लेब तऽ भोजन लगाएब,’ हम चाह दैत पुछलहुँ । पति चाहकेँ टेवुलपर राखि देलैन्हि आ ठण्ढा श्वास छोड़ैत जुत्ता सहिते शोफापर पड़ि रहलाह । की भऽ गेल छैन्हि हुनका कतहुँ वल्डप्रेसर तऽ नहि भऽ गेल छैन्हि, हमरा बहुतरास चिन्ता घेर लेलक ।

‘हमर मित्र सेवक प्रसाद यादव स्मरण अछि अहाँकेँ,’ किछु देर चुप रहलाक बाद शुरु कएलैन्हि । ‘स्मरण किए नहि रहत ? अहाँ एना किए पूछि रहल छी एखन ...........’ एहिसँ पहिने हम अपन बात पूरा करितहुँ एहिसँ पहिने निर्मेष दृष्टि लैत धाराप्रवाह कहऽ लगलाह, ‘ सेवकप्रसाद यादव हमरा सभक प्रिय मित्र, पतिक नोराएल आँखि किछु अनहोनीक संकेत दऽ रहल छल ।

हमर पूरा शरीर कानमे केन्द्रीत भऽ गेल ।’ हमरा सभसँ रुसिकऽ चलि गेल साक्षी..........।’

‘की ? .......आकाशपरसँ खसबाक पार आब हमर छल । हम किछु कहऽ चाहि रहल छलहुँ मुदा किछु सुनबाक अवस्थामे हमर पति कहाँ छलथि, ओतऽ मात्र बाजि रहल छलाह, ‘हुनकर माय विमार छल, देखवाक लेल अफिसक जीपसँ आबि रहल छलाह । हुनकर आदत छैन्हि, ड्राइवरकेँ ओ पाछू बैसा देलाह आ स्वयं जीप ड्राइव करऽ लगैत छलाह । ओना ओ ड्राइव बढ़ियाँ करैत छलाह, मुदा ओहिदिन नहि जाइन की भेल, शायद सड़कपार करैत एकटा मालकेँ बचएबाक चक्करमे हुनकर जीप उनैट गेल आ खधिआमे खसि पड़ल ।

ड्राइभरकेँ तऽ कनी–मनी चोट लागल मुदा स्टेरिङ्ग छातीमे घूसि गेलाक कारण यादवजीकेँ घटने स्थलपर मृत्यु भऽ गेल । एखने हुनकर घरसँ आबि रहल छी । दिव्याकेँ तऽ हाले नहि पुछू । हुनकर माए वेचारी कानि–कानिकऽ अधमरु भऽ गेल छल । ४७ वर्षक कोनो मरबाक उमेर होइत अछि । तीन–तीनटा वच्चा अछि । की हएत ओकर ? हे भगवान अहाँ चूनि–चूनिकऽ लोककेँ लऽ जाइत छी ।

हुनका बजा तऽ नहि सकैत छी । ‘काल्हि अहूँ ओतऽ चलि जाएब, लोककेँ सान्तवनो मलहमके काज करैत अछि ।’

‘सुनू हमरो किछु सुनू’ हमर बात नहि सूनि रहलाक कारण हमरा तामस आबि रहल छल । हुनक मृत्यु कए गतेकऽ भेल छल ।’

‘ १७ गते कऽ ।’

‘१७ गते कऽ ....एहि १७ गते कऽ ।’ हमर आँखि आश्चर्य आ रोमाञ्चसँ भड़ल जा रहल छल ।‘ हँ.. हँ.. इएह १७ गते कऽ ।’

‘मुदा एना कोना भऽ सकैत अछि हमर मतलव एहि १८ गते कऽ अहाँक अनुपस्थितिमे ओ अपना घरपर आएल छलाह आ एही ठाम बैसल छलैथि ...। हमरा सँग बातोचित कएने छलैथि ।’

‘की कहि रहल छी अहाँ ? ...होशमे तऽ छी, हुनकर मृत्यु फागुन १७ गते भोरेमे भेल छल आ १८ गते भोरमे अन्तिमो संस्कार भऽ गेल एहि बातक सयकड़ो लोक गवाह अछि । अहाँ कहैत छी जे १८ गतेक साँझमे ओ आएल छलाह । जे मोनमे आएल से कहि दैत छी । किछु स्मरणो–तस्मरणो रहैत अछि की नहि ?’

हमर पति हमरापर अनाप–सनाप कहि रहल छलैथि मुदा, हमर शरीर एहि बातकेँ स्वीकारएके पक्षमे नहि छल बातक सत्यताक ज्ञान एखन मात्र हमरे छल हमर हाथ–पएर काँपिकऽ ठण्ढ़ा भऽ गेल छल । यादवजीद्वारा पकरल गेल हाथक अनुभव हमरा वेहोशीके अवस्थामे आनि देने छल, मुदा हमरा सत्यताक प्रमाण देवाक छल । शक्ति जमाकऽ हम कहलहँु, ‘हमरा बढ़ियाँ जकाँ स्मरण अछि ओ १८ गतेक साँझ छल ओहिदिन हम दुधबलाकेँ हिसाब देने छलहुँ, हमर बातपर विश्वास नहि हुअए तऽ रघुसँ पुछि लिअ । हुनका जाइत समय ओहो गेटपर ठाढ़ छल । उएह तऽ गेट बन्द कएने छल ।’

‘हँ मालिक मलिकानि ठीक कहैत छथि हमर नमस्कारकेँ ओ हाथ उठाकऽ जवाव सेहो देलैन्हि । बरण्डापर ठाढ़ रघु हमर बातकेँ पुष्टि कएलक । ‘मुदा एना .....कोना भऽ सकैत अछि ।’ पतिपर एखनो अविश्वासक बादल छाएल छल । तखने हमरा एका–एक यादवजीद्वारा देल गेल डायरीक स्मरण आएल, हम दौड़ैत डोर दिस बढ़लहुँ ओ डायरी एखनो ओहिठाम राखल छल । थरथराइत हाथसँ ओहि डायरीकेँ निकालहुँ हमरा हाथमे छल हमर सत्यताक प्रमाण ।

ओ हमर पाछू आबिकऽ ठाढ़ भऽ गेलाह ।

‘देखू ई डायरी यादवजी अपने हाथसँ हमरा देने छलैथि । दूइए दिनक बात अछि डायरीक पन्ना उनटऽबैत हम कहलहुँ, हमरा अहाँकेँ सम्बोधितकऽ देल गेल डायरीपर हुनकर हस्ताक्षर आ १८ गते लिखल अछि ।

ई रोमाञ्चक बात सूनिकऽ हमर पति मित्रक दुःखसँ उबरिकऽ एहि सोचमे डूवि गेलैथि जे मृत्युक बाद ककरो आत्माकेँ एहि प्रकारे कतहँु जाएब आएब सम्भव अछि । की आजुक युगमे केओ एहिपर विश्वासकऽ सकत ? मुदा जतेक ई सत्य अछि यादवजीकेँ मृत्यु १७ गते भेल अछि, ओतवे निर्विवाद सत्य अछि फागुन १८ गतेक साँझ हमरा घरपर हुनक आएब, जेकर सत्यता ई लाल डायरी प्रमाणितकऽ रहल छल ।

हमर पति श्रद्धासँ डायरी सहलौलैन्हि । पहिल पन्नापर लिखल वकील साहेब आ भौजीकेँ सप्रेम भेट । सेवक प्रसाद यादव ।

यादवजीक नाम देखिकऽ ओ पुनः दुःखित भऽकऽ कहलाह, ‘हमरासँ भेटकऽ जइतहुँ मित्र, एकटा स्मरण छोड़िकऽ गेलहुँ मात्र । ओ एक–एकटा पृष्ठकेँ एना उण्टाबि रहल छलैथि ओकर मध्य हुनकर मित्र बैसल हो । मुदा की ! भीतर पन्नापर जेना घड़ि रुकि गेल हुए । हरेक पन्नापर एकहिटा गते लिखल छल फागुन १८ गते आ मात्र फागुन १८ गते ............।

प्रकाशित मिति: सोमबार पौष २१, २०७६/Monday 01-06-2020

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